विश्व बालिका दिवस परआज ही " बिटिया" शीर्षक से
लिखी रचना , इसे जिला स्तरीय समारोह में भी प्रस्तुत
किया ...................
हालातों को किस कदर मोडतीं हैं बेटियाँ..
..
संबंधों के टूटे तार जोड़तीं हैं बेटियाँ..!
*******
छम छम बजे पायल मंदिर की घंटी जैसे
,
नन्हे नन्हे पाँवों से जब दौड़तीं हैं बेटियाँ...!
*******
सृष्टि के शिखरों को श्रम से छू जातीं ,
वर्जनाओं के पहाड़ जब तोड़तीं हैं बेटियाँ...!
*******
ब्रज के धाम जैसे पावन अहसास आते
,
श्रृंगार में स्नेह-रस निचोड़तीं हैं बेटियाँ ...!
*******
फैल जातीं विश्व में अनंत हृद - भावों से
,
समाईं बिंदु में जब स्व- सिकोड़तीं है बेटियाँ...!
*******
घर का कोना कोना , यादों की हिलोर देता
,
बाबुल की बगिया को जब छोड़तीं हैं बेटियाँ...!!